वेद में आदर्श स्त्री शिक्षा का वर्णन by-gautam kumar

डा. अशोक आर्य। महिलाओं के लिए वेद ने जिन शिक्षाओं को आवश्यक माना है , उनमें पाक शिक्षा प्रमुख है | वास्तव में स्त्री शिक्षा के वैदिक आधार में पाक शिक्षा को अत्यावश्यक माना गया है | एक उत्तम गृहिणी अथवा एक उत्तम माता बनने के लिए महिलाओं के लिए पाक विद्या का उत्तम अभ्यास होना ही आधार होता है | इसके बिना वह न तो सफल गृहिणी ही बन पाती है ओर न ही सफल व उत्तम माता ही बन सकती है | इसलिए इस विद्या को जानने के लिए हमें वेद की शरण में जाना पड़ता है | वेद में अनेक मन्त्र स्त्रियों की शिक्षा विशेष रूप में पाक शिक्षा पर प्रकाश डालते हैं |

इसके लिए आओ हम यजुर्वेद के कुछ मंत्रों का अवलोकन करें:

सिनीवाली सुकपर्दा सुकुरीरा स्वोपाशा |

सा तुभ्यमदिते मह्योखां दधातु हस्तयो || यजुर्वेद ११.५६ ||

यह चार मन्त्र यजुर्वेद में आये हैं | इन मन्त्रों में स्त्रियों की पाक विद्या सम्बन्धी शिक्षा पर विषद प्रकाश डाला गया है | इन चारों मंत्रोंमें उखा शब्द अनेक बार आया हुआ हमें मिलता है | उखा सहबद का अर्थ खोजने पर हमें ज्ञात होता है कि उखा का अर्थ है वह वास्तु जिस मेंकुछ पकाया जाताहै ,जिसे हम खाना पकाने की बटलोई के नाम से भी जनाते हैं | अत: उखा का अर्थ हुआ खाना पकाने की बटलोई |

यजुर्वेद के ही अध्याय ११ के मन्त्र संख्या ५६ में स्वोपशा शब्द आया है | महर्षि दयानंद ने अपने वेद भाष्य में इस शब्द का अर्थ करते हुए लिखा है ''अच्छे स्वादिष्ट भोजन बनाने वाली|'' इस के आधार पर इस प्रथम मन्त्र का अर्थ इस प्रकार बनता है कि हे सत्कार करने वाली , अखंडित आनंद भोगने वाली स्त्री , जो प्रेम से युक्त है | इससे स्पष्ट है कि पाक शिक्षा में प्रवीण माताएं सदा ही सब का भोजन के द्वारा सत्कार करने वाली होती हैं | वह आगंतुक को उत्तम तथा स्वादिष्ट भोजन परोस कर उसका सत्कार करती हैं | इस सत्कार से मधुर भोजन प्राप्त कर आगंतुक तृप्त होता है और इस भोजन की कला में निपुण माता की सर्वत्र प्रशंसा किया करता है | यह भोजन बनाने वाली माता सदा अखंडित आनंद भोगती है अर्थात् उसकी पाक कला की जब प्रशंसा होती है तो वह अत्यंत आनंद का अनुभव करती है | यह माता प्रेम से युक्त होने के कारण बड़े प्रेम से भोजन बनाती और परोसती है ,जिस से अतिथि भी आनंद से विभोर हो जाता है |

मन्त्र आगे उपदेश कर रहा है कि हे माता ! तूं अच्छे केशों वाली होने के कारण अत्यंत श्रेष्ठ कर्म का सदा सेवन करती है | तेरे काले बाल आकर्षण का कारण होते हैं किन्तु तो भी तूं सदा अच्छे तथा उत्तम कर्म ही करती है | इस सब के साथ हे माते ! तूं सदा अच्छा , उत्तम तथा स्वादिष्ट भोजन बनाती है | यह सब बनाने के लिए तेरे हाथ दाल बनाने की जो बटलोई को धारण करें , बटलोई को ग्रहण करें , उसके प्रयोग से तूं उत्तम खाद्य सामग्री तयार कर |

मन्त्र का आश्य है कि स्त्रियाँ अपने यहाँ गृह कार्य के लिए अच्छी तथा पाक विद्या में प्रवीण दासियों को पाक कार्य के लिए नियुक्त रखें | उनका गृह कार्य तथा पाक कार्य में निपुण होने के साथ ही साथ चतुर होना भी चाहिए | ताकि पाक कार्य की सब सेवा उत्तम व ठीक समय पर होती रहे | खाना खाते समय किसी अभ्यागत के सामने कोई कठिनाई न आने पावे |

मन्त्र में जो दासियों के रखने के लिए कहा गया है | इसका यह भाव नही है कि दासियाँ अवश्य ही रखी जावें तथा दासियाँ रखने के पश्चात घर की अन्य महिलाएं कुछ भी न करते हुए निठल्ली बैठी रहें | इसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि पाक आदि की सेवा केवल दासियों के लिए है अन्यों के लिए नहीं , यह सोचना सर्वथा गलत है | घर की सब महिलाएं भी पाक कार्य में निपुण हों तथा आवश्यकता के अनुसार वह भी पाक कार्य करें | इस सम्बन्ध में यजुर्वेद के कुछ अन्य मंत्रों में स्पष्ट संकेत किया गया है , जिन का हम अगले लेख में वर्णन करेंगे |

मन्त्र में महिलाओं के लिए पाक कला में प्रवीण होने के लिए बार बार उपदेश किया गया है | इससे स्पष्ट होता है कि पाक कला भी एक विद्या है | इस कला को सीखने के लिए महिलाओं को पाक विद्या सिखनी होगी | इस से स्पष्ट होता है कि मन्त्र यहाँ भी उपदेश करता है कि स्त्री शिक्षा के बिना स्त्री का धर्म पूर्ण नहीं होता | इसलिए स्त्रियों को भी शिक्षित होना आवश्यक है |

Credits:

gautamkumar.com

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